सोमवार, 13 अगस्त 2012

रामदेव की रामलीला...


आज योगगुरु रामदेव को संसद पर कूच करते वक्त दिल्ली पुलिस ने रणजीत सिंह फ्लाइओवर से गिरफ्तार कर लिया। रामदेव  खुद को जॉर्ज फर्नांडीज़ समझकर पुलिस वालों के साथ प्रेस को संबोधित कर रहे थे। सिर पर काला पट्टा बांधकर रामदेव कौन सा संदेश देना चाह रहे थे, पता नहीं? आपातकाल के दौरान जॉर्ज बाबू को कई बार जेल भेजा गया था, जॉर्ज बाबू कि वो तस्वीर (जो बाद में कई अख़बारों में लगी) आज भी ज़हन में ताज़ा रहती है।  रामदेव 9 अगस्त से दिल्ली के रामलीला मैदान पर कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन पर बैठे है, यह दूसरी बार है जब रामदेव अपनी इन्हीं मांगों के साथ आलीशान पंडाल में अपने समर्थकों या यूं कहें की अनुयायियों के साथ रामलीला मैदान में बैठे है। इससे पहले जब वो यहां पर बैठे तो उन्हें दिल्ली पुलिस ने ऐसा भगाया था कि बाबा सीधे देहरादून के जॉली ग्रांट एयरपोर्ट पर सलवार-कमीज़ पहने दिखाई दिए थे। उस समय उनके साथ में उनके राइट हैंड आचार्य बालकृष्ण भी थे। आजकल बालकृष्ण फर्ज़ी पासपोर्ट के मामले में  देहरादून जेल में है। इस बार बिना बालकृष्ण के इस आंदोलन को गति देने के लिए रामदेव ने कोई कोरी कसर नहीं छोड़ी थी, पहले ही दिन रामलीला मैदान में रामदेव ने देश के शहीदों-क्रांतिकारियों के साथ में  आचार्य बालकृष्ण की तस्वीरों के पोस्टर-होर्डिंग्स लगवा दिए थे, जिसे मीडिया में हुई फ़ज़ीहत के बाद  तुरंत पोस्टर हटवा भी दिया और सफाई भी नहीं दी। 
रामदेव इस बात को अपनी कई जनसभाओं में कह चुके है कि "इस देश में जिस किसी ने भी कभी जनता के भले के लिए कुछ करना चाहा है उस जेल में जाना पड़ा है वैसे ही आचार्य बालकृष्ण को भी जेल में जाना पड़ा है। उन्हें इस कांग्रेसी सरकार ने झूठे मुकदमें में फंसाया है। " यानि वो हर प्रकार से जनता के मन या यूं कहें कि अपने समर्थकों के मन में बालकृष्ण को महान बनाने में लगे हुए थे, रामदेव का अपना चैनल "आस्था" दिन में न जाने कितनी बार बालकृष्ण की फोटो को क्रांतिकारियों की फोटो के साथ में चलता रहा है, 9 अगस्त को रामलीला मैदान में  भीड़ बुलाने के लिए न जाने किस-किस प्रकार के प्रोमो कार्यक्रम में चलाए जा रहे थे।  किसी भी प्रकार से विज्ञापन और प्रोग्राम में भेद नहीं हो पा रहा था। पता नहीं सूचना प्रसारण मंत्रालय का इलैक्ट्रोनिक मीडिया मॉनीटरिंग सेंटर(रिंग रोड़,आईटीओ दिल्ली) क्या कर रहा था? पता नहीं किसी प्रकार केबल टेलीविजन रेगुलेशन एक्ट 1995 के प्रोग्राम कोड और विज्ञापन कोड का खुलेआम लगातार उल्लंघन हो रहा था? किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया था, तभी तो उस प्रोमो प्लेट का ग्रैब लेकर एक वीनाइल होर्डिंग बनवाई गई, जिसे पंडाल में हर तरफ लगया गया, जिसे देखकर ख़बरनफीसों ने एक हेडलाइन चलवा दी और तब जाकर मामला सूर्खियों में आय़ा।  
रामदेव ने 9 अगस्त को रामलीला मैदान से अपने आंदोलन पहले दिन ये कहा था कि वे किसी प्रकार से किसी को भी गाली नहीं देंगे, किसी भी राजनीतिक दल के खिलाफ किसी भी प्रकार की कोई कटु बात नहीं कहेंगे, वे संसद का सम्मान करेंगे, वे सभी सांसदो का सम्मान करेगें। उनके मंच से किसी के लिए कोई ऐसी बात नहीं कही जाएगी जिससे संविधान का अपमान हो। वे तो यहां तक कह गए कि इस मंच पर राहुल गांधी और सोनिया गांधी का भी स्वागत है।  सवाल है कि ये सब बाते रामदेव क्यों कह रहे थे?दरअसल रामदेव को पता था कि कुछ दिनों पहले ही टीम अण्णा के आंदोलन का क्या हश्र हुआ है और किस प्रकार उनके आंदोलन का अंत एक राजनीतिक महत्वकांक्षा को स्वीकारने के साथ हुआ है। रामदेव को अण्णा  आंदोलन के कई बार फ्लॉप होने से सबक लेना था। किस प्रकार टीम अण्णा अपना अनशन स्वंय ही रखती और स्वंय ही खोल लेती थी, कभी रामलीला मैदान, मुंबई, जंतर-मंतर पर हर किसी को गरिया कर टीम की बहुत फज़ीहत हो चुकी थी।  वैसे देखा जाए तो पहले भी रामदेव का आंदोलन फ्लॉप नहीं हुआ था, उनके समर्थक डटे हुए थे, वो तो पुramdevarrestedindelhiलिस ने रात को सबको खदेड़ा और लाठीचार्ज किया। रामदेव अपनी सम्पत्ति बचाने के लिए सीधे भागे देहरादून। रामदेव ने कभी मीडिया को भी गाली नहीं दी, कभी फेसबुक का सहारा भी नहीं लिया था, रामदेव ने एसएमएस, मिस कॉल का सहारा भी नहीं लिया था, रामदेव ने योग से अर्जित की अपनी फैन फॉलोइंग से इस आंदोलन को गति देने की कोशिश की है। रामदेव के आंदोलन में अण्णा आंदोलन से कुछ फर्क़ भी दिखे। रामदेव अकेले सब कुछ बोलते है, जो बोलते है वो पूरे आंदोलन की लाइन होती है, अण्णा आंदोलन में कौन क्या बोल जाता है और कब क्या हो जाता है, किसी को पता भी नहीं चलता है, सब अपनी-अपनी ढपली बजाते है। इसलिए वे हर बार बेचारे बूढ़े अण्णा को अनशन के लिए परेशान करते रहते है। अब अण्णा भी अपनी टीम से परेशान हो गए है, वो लौट गए रालेगण सिद्दी, अब वहीं पर करेंगे अनशन। रामदेव अण्णा आंदोलन के एक बार फिर से फ्लॉप होने से भीतर से खुश ही हुए होंगे। क्योंकि वो जनता जो अण्णा के साथ में लगी थी वो किसी भरोसे के साथ में वहां पर आई थी और टीम ने हमेसा जनता का भरोसा तोड़ा था। अब रामदेव की बारी भी की वो उस टूटे भरोसे के साथ में किसी प्रकार की दिलासा देकर काम चलाए।
थोड़ा तो कांग्रेस भी चाहती थी कि विदेशो में जमा काले धन को भारत लाने की मांग इतनी बड़ी नहीं है जितनी बड़ी जनलोकपाल और अपने 13 भ्रष्ट मंत्रियों पर कार्रवाई करना है। विदेशों में जमा धन पर सभी की सहमति हो जाएगी और जनलोकपाल का मुद्दा भी हवा में रह जाएगा। आज पता नहीं क्यों ऐसा लगा रहा है जैसे कांग्रेस अकाली राजनीति को खत्म करने के लिए जरनैल सिंह को खड़ा करती दिख रही है। जैसे अमेरिका रूस के टूकड़े करवाने के लिए किसी बिन लादेन को खड़ा कर रहा है, जैसे श्रीलंका में कोई एलटीटीई को खड़ा कर रहा है! रामदेव ऐसा मानते हैं कि देश में काला धन जो विदेशों के बैंकों में जमा है वो भारत में आ जाएगा तो सभी की गरीबी दूर हो जाएगा, ऐसा वो अपने प्रतिदिन के भाषण में कहते है जैसै वो अनुलोम-विलोम और प्राणयाम कपालभाती करवाते है, उसी प्रकार।  लेकिन क्या इसके पीछे भी रामदेव की कोई राजनीतिक महत्वकांक्षा है? पता नहीं! लेकिन जो भी हो जनता रामदेव के कार्यक्रम में आती तो है, कम से कम सुबह तो आ ही जाती है, प्राणायाम हो जाता है लगे हाथ एक शिविर जिसके लिए 10-20 हज़ार खर्च करने पड़े वो भी हो आते है। ख़ैर जनता है बेचारी क्या जाने की सरकार क्या चाहती है और रामदेव -अण्णा जैसे लोग क्या चाहते है? वो तो बस बनती रहती है और आगे भी बनती रहेगी...